रविवार, 25 जुलाई 2010

गुरु दक्षिणा ?

ये कविता किस सन्दर्भ में लिखी बाद में बताऊंगा . हाँ उत्सुक रहूँगा कि कविमन और पाठक में सम्प्रेसन कविता में हुवा है तो उसका अर्थ उनके अनुसार क्या है ? और इसे चाहें तो पहेली भी समझ लेँ ........ !

तो अर्ज़ है ....

मेरी बात समझ लेती है 
क्या इतना नाकाफी है 
छुप छुप के भी मिल लेती है 
क्या इतना नाकाफी है 


उम्र की लम्बी शाम में भी 
है पोस दिया जीने की ललक 
इतनी बड़ी गुरु है मेरी 
 क्या इतना नाकाफी है 

गुरु पूर्णिमा का ये दिन है 
क्या इतना नाकाफी है ?????

( समर्पित : प्रिय सखा , उनके स्वयं स्वघोषित ,  पर उतने ही प्रिय आनद भी , छोटे भाई तिलकराज कपूर को समर्पित . क्योंकि शायद उनकी कक्षा पाठ से ही मैं कुछ गज़ल्नुमा कहने की हिम्मत जुटा पाया . )  

9 टिप्‍पणियां:

  1. पहेली तो बतायी जा सकती थी पर गुरुपूर्णिमा का संदर्भ जटिलता उत्पन्न कर गया।

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  2. उम्र की लम्बी शाम में भी
    है पोस दिया जीने की ललक
    इतनी बड़ी गुरु है मेरी
    क्या इतना नाकाफी है
    ... bahut hai, bahut badhiyaa

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  3. मेरी बात समझ लेती है
    क्या इतना नाकाफी है
    छुप छुप के भी मिल लेती है
    क्या इतना नाकाफी है


    उम्र की लम्बी शाम में भी
    है पोस दी जीने की ललक
    इतनी बड़ी गुरु है मेरी
    क्या इतना नाकाफी है

    गुरु पूर्णिमा का ये दिन है
    क्या इतना नाकाफी है ?????
    कई बार पढ़ी .....पर और उलझती चली गयी आपकी पहेली .....कुछ कयास ......
    गुरु पूर्णिमा के दिन लिखी है तो निश्चित तौर पे वही होगी जिसे आप गुरु मानते हैं .....
    पर गुरु छुप छुप के तो नहीं मिलते ....
    खैर ....जिसने जीने की ललक पैदा कर दी हो जाहिर है कोई ख़ास ही रहा होगा .....या रही होगी ....इसके लिए बधाई ......!!
    अब पहेली तो आपके ख़ास मित्र तिलक राज जी बता सकेंगे .....

    तब तक हम इन्तजार करते हैं ......!!

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  4. aaapki rachnna kahen ya paheli par achhi bahut lagi. rahi jeene ki lalak paida karne wali baat to hamto bas andaaza laga sakte hain.voaapi maa, guru ya fir aapkiardhagini bhi ho sakti hain.
    poonam

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  5. बहुत सुंदर शव्दो मे आप ने इस पहेली नमुना कविता मै अति सुंदर सवाल पुछा है... मेरे ख्याल मै तो यह सिर्फ़ "जिन्दगी! ही हो सकती है,जो हम से छुप कर मिलती है, क्योकि हम इस की सचाई से आंखे जो चुराते है, ओर हमे बहुत कुछ सिखाती भी है ,कदम कदम पर जीवन के आखरी कदम तक...

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  6. haan raj bhatiya jee ' zindagee ' hee hai .

    aur nayee post par aap use dekh bhee sakte hain .

    meree potee nalinee !

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  7. आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    बहुत दिनों के बाद आपका ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना पढने को मिला! बेहद अच्छा लगा! उम्दा प्रस्तुती!
    मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!

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  8. RAAJ JI ...

    KYA KHOOB LIKHA HAI , KUCH ULJHA , PHIR SAMKJHA , PHIR ULJHA , AB SIRF SHABDO KA AANAND LIYA HAI .. AUR SAHI ME ACCHA LAGA..

    VIJAY
    आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

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