रविवार, 20 दिसंबर 2009

कुछ हाईकू .......मराठी में.

१ -
मागू का ?
छन आनंदाचे
वंचित भाग्याचे
जे राहून गेले आयुष्यात
आज पर्यंत
मागू का ?

२-
प्रीति ?
स्मृति दंशांची रीत
खरच का ?
कधी जगलात  ?

३-

आहे  का मी भाग्य तुझा ?
असो कि नसो.......
स्वप्न तरी ?

४-

स्मृति ...
       तृप्ति ......
            विरक्ति ही .......

छन सरलेले
सर्व मिलवले
होतं जे पूर्ण अटल

५-
जगणं जीवन ?
छण छण छाणिका......
खरंच कठिन का ?       



मंगलवार, 3 नवंबर 2009

आंखमिचौली ........!

आज पूनम का चाँद ..........
फिर निकला
कुछ ऊपर तक उठ आया हुआ
कुछ बदलियाँ ,कुछ कुहासा ,कुछ ठंढ
फिर भी तुमसा ही
मन में समाया हुआ
मैं भीतर से ,
बंद कांच की खिड़की से
बस निहारता उसको जैसे
नटखट नटखट जैसे कि तुम 
और तुम्हारी आंखमिचौली


पतझड़ से पत्तों रहित
पेडों की टहनियों से
छन कर आता चाँद
कर रहा है 
वैसे ही 
जैसे दूर बसी तुम
और तुम्हारी ही यादों की  ......
वैसी ही कुछ आंखमिचौली


मन बोझिल बोझिल
असह्य सी उदासी
और उदास उदास सी
फ़ैली हुयी दूर दूर तक
करती लुका छिपी
गुमसुम सी चांदनी
तृप्ति अतृप्ति का खेल
हाँ वह भी खेलती
धरती से  आंखमिचौली


मैं अकेला
बस निहारता .....
सोच सोच कि तुम भी
निहार लो शायद
वैसा ही ,उतना ही, ऐसा ही, यही पूरा चाँद
भीगी भीगी सी ऐसी ही
भरपूर फ़ैली चांदनी में  
हो जाये कुछ तो
मन से मन का संवाद
महसूस न हो यह एकान्तिका
हो जाये कुछ आंखमिचौली 


सोच कर ही भर जाती है
मन में एक खुमारी
कि तुम्हारी भी आँखें
ऐसा ही कुछ निहारतीं
चलती हुयी अनगिनत यादों के साथ
हर पल छिन जिया हुआ हमारा साथ
और दूर दूर तक फ़ैली असमर्थता
कैसे थाम लूं ऐसे में ,ऐसे ही
जैसे थाम लेता था
तुम्हारा
अपने हाँथों में हाँथ


क्या करुँ दूरियों का
उमड़ घुमड़ आती यादों का 
मन कों किसी कविता में उडेल दूँ.......?
शब्द बनते हैं मिटते हैं
वह भी खेल रहें हो जैसे 
जैसे तुम सी आंखमिचौली


क्या करुँ ?
निर्विकल्प 
मन को कविता बना दूँ ?
या
कविता को ही मन ........?
हो तो तुम ही
दोनों में
खेलती  सी
निरंतर एक आँखमिचौली !

गुरुवार, 7 मई 2009

कभी हार कर ललकार कर .......! ..........!!





आत्म कथ्य


यह पयाम भी है और पैगाम भी !

उस दोस्त के नाम , जो ज़िंदगी को लाश में बदल देना चाहता है ;........ या मरकर या जीकर । उसी अनजाने दोस्त के लिए जिंदगी का मेरा अपना फलसफा ...............एक 'ललकार' की उम्मीद में
.........................................................................................................................जो कि उसमे है !


कभी हार कर ललकार कर ललकार कुछ हारा तो है
मुन्तजिर है मौत तो क्या , सब जिया सारा तो है


ले हवाएँ चल पड़ीं जिस ओर,उड़ता चल वहीं
गर्द
के हक में जहां आकाश ये सारा तो है

बाँट
लेगा कौन तेरी जिंदगी को मौत को
पूछ ख़ुद से फ़िर बता इन्सान सा प्यारा तो है

बचपना
क्या ,क्या जवानी , जिंदगी की शाम क्या
जो
मिला गर बद कहीं ,कुछ कुछ को पुचकारा तो है


करने के पहले कोई शिकवा , 'खुदी' से पूछ ले
देख तुझसे भी जियादा वक़्त का मारा तो है

क्या लगा था दांव पर जो ,रो रहा दुनिया से यूँ
तुझसे
भी बदबख्त ,जीते जी कोई हारा तो है

मत समझ के दांव कोई जिसपे तू लग जाएगा
जीत कैसी ,हार क्या , ये खेल ही सारा तो है

पाल मरने का भरम सच में ना तू मर पायेगा
गर अगरचे जान ले आशिक जहान सारा तो है

तुझको
लाया वो जमीन पर एक दिन ले जाएगा
कह सकेगा ? वक़्त को थोड़ा सा ललकारा तो है

रविवार, 26 अप्रैल 2009

मंज़िल

कभी हँस दिया हँसा दिया ,कभी रुला रुला दिया ।
गो नाम तेरे दर्ज थे ,तूने तो सब भुला दिया ।

मिले थे बाँह खोलकर ,कभी गले लगा लिया ।
कभी तो दर से बेकदर , दर बदर बना दिया ।

कभी तो महकी रात की ,रानी सी दिल में सिमट गए ।
कभी तो चाँद चांदनी को , बेवफा बना दिया ।

कभी करार कौल का ,वादों का लंबा दौर था ।
कभी टूटने को बेकरार ,सब कुछ तो सुन सुना दिया ।

ये मत समझ की फ़िर वही ,मैं कर रहा कोई गिला ।
दुनिया से कह दिया सिला , खंजर था मैंने चला दिया ।

चाहा तुझे था बेपनाह , मान कर अटल मेरा ।
बेनियाज़ हो के ख़ुद को , दर पे तेरे बिछा दिया ।

बताओ तो कि कौन हो , राहों के मेरे हमसफ़र ।
तूने तो इस सफर को ही मंजिल मेरी बना दिया ।

मंगलवार, 31 मार्च 2009

हाल ?




हमसे मत पूछो ,
ज़माने का कोई हाल ।
लगता नहीं है देखके ?
सब लोग हैं बेहाल !

आते हैं , जाते रहते हैं ।
हर सै कोई बवाल ।
फुर्सत मिली तो पूछेंगे ।
कैसे हैं हालचाल ।

फिलहाल उलझे बैठे हैं ,
ख़ुद का नहीं ख़याल ।
घेरे में लिए बैठे हैं ,
कितने तो हैं सवाल ।

तो क्या हुआ दुनिया नहीं ,
कोई मेरे पीछे !
मालूम मेरे पीछे है ,
उसका कोई जलाल ।

फ़िर क्या कोई मलाल,
तो फ़िर क्या कोई सवाल ??

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009

माँ.........! तुझे सलाम ......माता मेरी !... तेरी जय हो !........जय हो !!!!!

माँ .........!

तेरी संतानों ..........तेरे बच्चों ने , कला की दुनियाँ में तेरा नाम आसमानों पे लिख दिया ! दुनियाँ भर में बस तेरी ही जय हो रही है । जय हो माता !.......... तेरी जय हो !!
लेकिन तेरी ' आन ,बान , शान , मान ' से बढ़ कर कर क्या हो सकता है कोई भी ' सन्मान ' । हो सकता है ?
तेरे बेटे, ' रहमान ' ने तो कह भी दिया ,
............." मेरे पास माँ है " .........!

सच्चा बेटा तेरा सच्चा हिन्दुस्तानी और उसने तो ना जाने कितने पहले ही गाकर गुंजा दिया था
...............
माँ तुझे ..........सलाम ! अम्माँ तुझे सलाम ! ..................वंदे मातरम् !!!!!

पूरे देश ने झूम के गाया था उसके साथ । मैंने भी बड़े आनंद मन से गाया था माते !

और आज , उसकी उस ऊँचाई और शान को मेरा छोटा सा सलाम ! ........

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जय....हो !........जय हो !........जय हो ! जननी मेरी ............ तेरी जय हो !
माता मेरी ..............तेरी जय हो !

तेरी गोद रहे............आँगन मेरा !
आँचल तेरा ........... चाहत मेरी !

ममता से भरी ..........आँखें तेरी !
काबा मेरा .............काशी मेरी !

सब कुछ मेरा ...........वरदान तेरा !

सौभाग्य .......................मेरा !
अरमान .......................मेरा !
सम्मान ........................मेरा !
ईमान ..........................मेरा !
भगवान........................ मेरा !
............जय हो !....... जय हो !........... जय हो !


बस माँ मेरी .......तेरी जय हो !.....जय हो !

तेरी सेवा अनहद नाद रहे ।
बस तू ही तू ... ये याद रहे
आनंद रहे ..............
...........उन्माद रहे
मर मिट जाएँ ........के रहे रहें
बस तेरे सर पर .......... ताज रहे
तू माँ अपनी ....ये नाज़ रहे .........
तेरे दामन में .............
आबाद हैं .............हम sssss .......
तो फ़िर कैसी ...........फरियाद रहे ............?

दुनियाँ देखे...................देखे दुनियाँ !
ऐसी जय हो !........ऐसी जय हो !

...........जय हो ! जय हो ! जय हो !

आयी मेरी,
माई मेरी,
जननी मेरी ,
माता मेरी,

माय मदर इंडिया ...........
भारत माता ,
भारत माता ........मेरी .......................... मदर इंडिया .........

तेरी जय हो !............. तेरी जय हो....... ! ......................... तेरी जय हो !!

जय हो !

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मेरी रचना ar rahman के ऑस्कर मिलने पर लिखी गयी , मैंने नवोदित संगीतकार विवेक अस्थाना के साथ मिल कर इसे संगीत बद्ध भी किया । इसके रेकॉर्डेड संस्करण व पुनर मुद्रित गीत का लिंक देते शीघ्र ही आपके सामने पेश करूंगा ।


















गुरुवार, 15 जनवरी 2009

ज़िंदगी ...............?

ज़िन्दगी !

कैसे कटी ?

आहों में कोई !

चाहूं मैं कोई !

पाऊँ मैं कोई !

राहों में कोई !

वाहों में कोई !

बाहों में कोई !

सच में कोई ?????????????

बुधवार, 14 जनवरी 2009

जिस को चाहा उसी को रुलाते रहें..........................???

जिस को चाहा उसी को रुलाते रहें ?
याद करते रहें ? याद आते रहें ?

साथ चल कुछ कदम लड़खडाने लगें ?
कुछ गिरें ? कुछ उठें ? कुछ उठाते रहें ?

अज़नबी हो सकोगे ? बताओ जरा ?
कब तलक बोझ मन का उठाते रहें ?

कोई अपना रहे, कोई सपना रहे,
इस जमीं को ही ज़न्नत बनाते रहें ।

इतनी रुसवाईयाँ ? फ़िर से मिल ना सकें ?
कुछ मिटाते रहें , कुछ भुलाते रहें .

पलकें नम ही रहीं ,छुप के रोये भी हम ,
उनकी आंखों में काजल, सजाते रहें ।

बेवफ़ाई बहोत, हम से भी हो गयी !
वो भी तो हर डगर आज़माते रहें ।

हैं तराने फिजाओं में अब प्यार के ,
थोड़े चुन लें उन्हें गुनगुनाते रहें ।

शाम है जिंदगी की चलो तय करें ,
जो बची है उसे , मुस्कुराते रहें ।

कोई मुश्किल नहीं, जिंदगी ही तो है !
साथ ही हर कदम हम बढाते रहें ।

जो जलें तो जलें इक ' शमा ' की तरह ,
सब हथेली में जिसको सजाते रहें ।