दर्द हो तेरा कि मेरा, या ज़माने का सही
आग कुछ तो हो कही, कुछ मै धुवां बन जाऊन्गा
’ मन ह्रिदय अनुभूति ’ का बस स्नेह मेरे पास है
तुझ तलक पहुन्चे तो थोडा सा दिया बन जाऊन्गा
ये कविता किस सन्दर्भ में लिखी बाद में बताऊंगा . हाँ उत्सुक रहूँगा कि कविमन और पाठक में सम्प्रेसन कविता में हुवा है तो उसका अर्थ उनके अनुसार क्या है ? और इसे चाहें तो पहेली भी समझ लेँ ........ ! तो अर्ज़ है ....
मेरी बात समझ लेती है क्या इतना नाकाफी है छुप छुप के भी मिल लेती है क्या इतना नाकाफी है
उम्र की लम्बी शाम में भी है पोस दिया जीने की ललक इतनी बड़ी गुरु है मेरी क्या इतना नाकाफी है
गुरु पूर्णिमा का ये दिन है क्या इतना नाकाफी है ?????
( समर्पित : प्रिय सखा , उनके स्वयं स्वघोषित , पर उतने ही प्रिय आनद भी , छोटे भाई तिलकराज कपूर को समर्पित . क्योंकि शायद उनकी कक्षा पाठ से ही मैं कुछ गज़ल्नुमा कहने की हिम्मत जुटा पाया . )
मुझे क्या पता था तेरे होंठ जो संग बैठ मेरे प्यार का इकरार किया करते थे ओझल मेरी नज़रों से कहीं वोट में जाकर कितने अजनबियों से हर प्यार का व्यापार किया करते थे .
मुझसे तेरा प्यार तो था गहरा सा नाटक ही महज मेरे दुश्मन थे तुम इक बेवफा मालूम ना था ज़हर से हुस्न पर मासूमियत का लगा के नकाब चेहरा धोखा भी है दे सकता ,ये मालूम ना था
जहां में हुस्न इश्क प्यार की दौलत वालो पेट में जब ना हो रोटी तो प्यार कर देखो भूख से मरते बदनशीब उन इंसानों से प्यार पर मरने की कोई भी बात कर देखो
भूख तो देती है कर माओं से बच्चों को अलग जवाँ गदराये हुए जिस्म भी बिक जाते हैं भूख की मार से कोठों पे जवानी चढ़ती पेट की आग में तो प्यार भी जल जाते हैं
इश्क किस बूते बनाएगा जहाँ को खुशहाल सूखे चेहरों पे हंसी रोटियां ही लाती हैं इश्क औ प्यार मोहब्बत ये सभी धोखे हैं जब तलक पेट की खाई नहीं पट जाती है
साथ भी तूने दिया जब दिखी सिक्कों की चमक दुखों के मोड़ पर तेरे हाँथ छूटे पाए थे भूख और मुफलिसी में काम ना आया तेरा इश्क दुनियां के शोषित और बेजार ही काम आये थे
आज दुनियां है मेरी प्यार की सच्ची दुनियां जिसमे जो हुस्न है , वो भूखों की सच्ची दुनियां भूख रोटी की हो ,या प्यार की, या इज्ज़त की सच्चे लोगों की है ,है प्यार की सच्ची दुनियां
उसी दुनियां ने दिया है किसी एहसान का साया मुझको उसी दुनियां ने है मेहमान बनाया मुझको वही दुनियां है मेरा दीनो धरम प्यार वही वही दुनियां है मेरी हुस्न मेरी चाह वही
माफ़ मैंने तो तुझे कर दिया लेकिन फिर भी सोच की प्यार का व्यापार कहीं करते हैं ? मारते उसको हैं जो दुनिया लुटाकर अपनी किसी उल्फत भरी नज़रों के लिए मरते हैं ?
भूल जा अब तलक उन वादों को जो तूने किये भूल जा अब तलक उन यादों को जो मैंने जिए भूल जा अब तलक उल्फत के नाम सारे गुनाह भूल मत करते नहीं प्यार के किसी नाम गुनाह
जन्म भर जो किये तूने वो मोहब्बत के गुनाह किसी सच्ची सी मुहब्बत में दफ़्न कर देना देखना फिर जो मिलेगा तुम्हें अब तक ना मिला अपने आँचल में सितारे हैं जितने भर लेना .
दर्द तेरा हो कि मेरा या ज़माने का सही आग पाऊन्गा कहीन कुछ तो धुआन बन जाऊन्गा ’मन ह्रिदय अनुभूति ’का ही स्नेह हासिल है महज तुझ तलक पहुन्चे अगर थोडा दिया बन जाऊन्गा