शनिवार, 31 जुलाई 2010


रविवार, 25 जुलाई 2010

गुरु दक्षिणा ?

ये कविता किस सन्दर्भ में लिखी बाद में बताऊंगा . हाँ उत्सुक रहूँगा कि कविमन और पाठक में सम्प्रेसन कविता में हुवा है तो उसका अर्थ उनके अनुसार क्या है ? और इसे चाहें तो पहेली भी समझ लेँ ........ !

तो अर्ज़ है ....

मेरी बात समझ लेती है 
क्या इतना नाकाफी है 
छुप छुप के भी मिल लेती है 
क्या इतना नाकाफी है 


उम्र की लम्बी शाम में भी 
है पोस दिया जीने की ललक 
इतनी बड़ी गुरु है मेरी 
 क्या इतना नाकाफी है 

गुरु पूर्णिमा का ये दिन है 
क्या इतना नाकाफी है ?????

( समर्पित : प्रिय सखा , उनके स्वयं स्वघोषित ,  पर उतने ही प्रिय आनद भी , छोटे भाई तिलकराज कपूर को समर्पित . क्योंकि शायद उनकी कक्षा पाठ से ही मैं कुछ गज़ल्नुमा कहने की हिम्मत जुटा पाया . )