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ज़िन्दगी !
कैसे कटी ?
आहों में कोई !
चाहूं मैं कोई !
पाऊँ मैं कोई !
राहों में कोई !
वाहों में कोई !
बाहों में कोई !
सच में कोई ?????????????
जिस को चाहा उसी को रुलाते रहें ?
याद करते रहें ? याद आते रहें ?
साथ चल कुछ कदम लड़खडाने लगें ?
कुछ गिरें ? कुछ उठें ? कुछ उठाते रहें ?
अज़नबी हो सकोगे ? बताओ जरा ?
कब तलक बोझ मन का उठाते रहें ?
कोई अपना रहे, कोई सपना रहे,
इस जमीं को ही ज़न्नत बनाते रहें ।
इतनी रुसवाईयाँ ? फ़िर से मिल ना सकें ?
कुछ मिटाते रहें , कुछ भुलाते रहें .
पलकें नम ही रहीं ,छुप के रोये भी हम ,
उनकी आंखों में काजल, सजाते रहें ।
बेवफ़ाई बहोत, हम से भी हो गयी !
वो भी तो हर डगर आज़माते रहें ।
हैं तराने फिजाओं में अब प्यार के ,
थोड़े चुन लें उन्हें गुनगुनाते रहें ।
शाम है जिंदगी की चलो तय करें ,
जो बची है उसे , मुस्कुराते रहें ।
कोई मुश्किल नहीं, जिंदगी ही तो है !
साथ ही हर कदम हम बढाते रहें ।
जो जलें तो जलें इक ' शमा ' की तरह ,
सब हथेली में जिसको सजाते रहें ।