कभी हँस दिया हँसा दिया ,कभी रुला रुला दिया ।
गो नाम तेरे दर्ज थे ,तूने तो सब भुला दिया ।
मिले थे बाँह खोलकर ,कभी गले लगा लिया ।
कभी तो दर से बेकदर , दर बदर बना दिया ।
कभी तो महकी रात की ,रानी सी दिल में सिमट गए ।
कभी तो चाँद चांदनी को , बेवफा बना दिया ।
कभी करार कौल का ,वादों का लंबा दौर था ।
कभी टूटने को बेकरार ,सब कुछ तो सुन सुना दिया ।
ये मत समझ की फ़िर वही ,मैं कर रहा कोई गिला ।
दुनिया से कह दिया सिला , खंजर था मैंने चला दिया ।
चाहा तुझे था बेपनाह , मान कर अटल मेरा ।
बेनियाज़ हो के ख़ुद को , दर पे तेरे बिछा दिया ।
बताओ तो कि कौन हो , राहों के मेरे हमसफ़र ।
तूने तो इस सफर को ही मंजिल मेरी बना दिया ।
बाग में टपके आम बीनने का मजा
8 महीने पहले
बहुत बढ़िया!!
जवाब देंहटाएंRaj bhai,bahut sunder ghazal ke liye aabhaaar,umda hai aapki ghazal. likhte rahiye aur ummeed jagate rahiye.
जवाब देंहटाएंaapka
Dr.Bhoopendra
sunder rachna ke liye badhaai ke saath blog jagat men swagat.
जवाब देंहटाएंnarayan narayan
जवाब देंहटाएंये मत समझ की फ़िर वही ,मैं कर रहा कोई गिला ।
जवाब देंहटाएंदुनिया से कह दिया सिला , खंजर था मैंने चला दिया .
waah! bahut khuub!
bahut achchee gazal kahi hai.
sabhi sher pasand aaye.
बताओ तो कि कौन हो , राहों के मेरे हमसफ़र ।
जवाब देंहटाएंतूने तो इस सफर को ही मंजिल मेरी बना दिया ।
लाजवाब शेर.
सम्पूर्ण ग़ज़ल सुन्दर.
आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
कभी करार कौल का ,वादों का लंबा दौर था ।
जवाब देंहटाएंकभी टूटने को बेकरार ,सब कुछ तो सुन सुना दिया ।
बहुत ही सुन्दर रचना... आप मेरे ब्लौग पर आये इसके लिये एक बार फिर धन्यवाद.
कभी करार कौल का ,वादों का लंबा दौर था ।
जवाब देंहटाएंकभी टूटने को बेकरार ,सब कुछ तो सुन सुना दिया ।
bahut sundr lainen hain .