गुरुवार, 15 जनवरी 2009

ज़िंदगी ...............?

ज़िन्दगी !

कैसे कटी ?

आहों में कोई !

चाहूं मैं कोई !

पाऊँ मैं कोई !

राहों में कोई !

वाहों में कोई !

बाहों में कोई !

सच में कोई ?????????????

6 टिप्‍पणियां:

  1. Waah..waa...kamaal ka likha hai aapne...zindagi kii sachchaaii aur itne kam lafzon men...waah...Raj Saheb...Waah

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  2. क्या बात है राज साहब! पर फ़िज़ाओं में कोई जो है तो वो हमारे राज साहब। कितनी सुन्दर छोटी बहर ऊँची ऊँची बातों के साथ।
    मुआफ़ी चाहूँगा सरकार बहुत बहुत देर से आने की। पर अब ऐसा न हुआ करेगा। आपका अपना।

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  3. बहुत सुन्दर रोचक अभिव्यक्ति है सलाम आपकी ग़ज़ल को और आपको भी बहुत बढिया बधाई हो

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  4. iss se pehle wali rachnaa par comment dene ki
    koshish ki lekin nahi kar paya.....
    aapki bhaavnaaoN ko naman karta hooN. . . .
    ---MUFLIS---

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  5. ज़िन्दगी !
    कैसे कटी ?
    आहों में कोई !
    " ना एहतियात, ना हया, ना फ़िक्र किसी जमाने की,
    बेबाक हो अपना इजहार-ऐ-दर्द करती ये जिन्दगी...

    रिश्तों के उलझे सिरों का कोई छोर नही लेकिन,
    हर बेडीयों को तोड़ने का करार करती ये जिन्दगी... "

    regards

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