बुधवार, 14 जनवरी 2009

जिस को चाहा उसी को रुलाते रहें..........................???

जिस को चाहा उसी को रुलाते रहें ?
याद करते रहें ? याद आते रहें ?

साथ चल कुछ कदम लड़खडाने लगें ?
कुछ गिरें ? कुछ उठें ? कुछ उठाते रहें ?

अज़नबी हो सकोगे ? बताओ जरा ?
कब तलक बोझ मन का उठाते रहें ?

कोई अपना रहे, कोई सपना रहे,
इस जमीं को ही ज़न्नत बनाते रहें ।

इतनी रुसवाईयाँ ? फ़िर से मिल ना सकें ?
कुछ मिटाते रहें , कुछ भुलाते रहें .

पलकें नम ही रहीं ,छुप के रोये भी हम ,
उनकी आंखों में काजल, सजाते रहें ।

बेवफ़ाई बहोत, हम से भी हो गयी !
वो भी तो हर डगर आज़माते रहें ।

हैं तराने फिजाओं में अब प्यार के ,
थोड़े चुन लें उन्हें गुनगुनाते रहें ।

शाम है जिंदगी की चलो तय करें ,
जो बची है उसे , मुस्कुराते रहें ।

कोई मुश्किल नहीं, जिंदगी ही तो है !
साथ ही हर कदम हम बढाते रहें ।

जो जलें तो जलें इक ' शमा ' की तरह ,
सब हथेली में जिसको सजाते रहें ।




16 टिप्‍पणियां:

  1. Rajsahab,
    Aajtak zindageene yahee sikhaya ki jise ham behad chahte hain, wahee hame zarozaar rulaa sakte hain....aur hambhi na chahte huebhi jise ham bepanah pyar karte hain, usehee rulaate rehte hain....!Gair to gairhee hote hain...wo kabhi nahee rulaa sakte !Ye kaam apnehee karte hain !
    Bohot sundar bhavuk, rachna hai aapkee...kuchh goodhtaa liye hue...

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  2. goodhta ?

    jab 'shama' aur aapne " sundar bhavuk ,kah diya to goodhta kaisee ?

    ek baar fir try karen !

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  3. Haan...abhi bhi kuchh rahasyamaytaa hai, jo aapke Hidee lekhan(kavya khas karke) kee visheshtaa hai...!lekhanke baareme kahun to aapkaa bhashaakaa panditya spasht roopse nazar aataa hai aur vishayki jaankaareebhi...lekin, sach poochho to khud mujhe shuddha Hindike banisbat Hindustaneeki zyada aadat ho gayee hai...lekin apnee apnee ek shailee hotee hai, aur aap jis tarah kaa lekhan karte hain, uske liye shayad wahee mauzoom hai...!

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  4. Aur ek binatee hai, gar buraa na mane to, ye shabd pushteekaran nikaal den to kaisaa rahega??

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  5. mujhe to pataa hee naheen tha ki shabd pushtikaran hai . abhee hee hatata hoon .tech. naheen janta fir bhee !

    main to abhivyakti kee udarta aur swatantrata dono kee izzat karta hoon . iseeliye kabhee , kisee haalat me na koyee tippanee hatata hoon na hee chipata hoon . hoon .

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  6. BHAYEE ANUPAM AGRAWAL JEE NE EK TIPPANEE BHEJEE JO SHAYAD KISI ADCHAN SE PRAKASHIT NA HUYEE. UNKEE IKSCHA KO SAMMAN DETE HUYE UNKE KAHE KO PRAKASHIT KAR RAHA HOON.

    ZINDGEE KE SHAMA SATH CHALNE LAGEE
    KYOON YOON DIL SE UNHEN HAM BHULATE RAHEN
    MAN HRIDAY ME BHAREE HAIN JO ANUBHUTIYAN
    UNKO LAB PE LABALAB YON LATE RAHEN

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  7. ' shama 'jee,

    ek chota sa pratirodh !

    MAIN HINDEE , HINDUSTANEE YA FIR URDOO KO ALAG NAHEEN MANTA .SACH TO YE HAI KI GUJRATEE , MARATHI, BANGLA ' ARBEE 'FARSEE AADI ISKEE BAHNE AUR SAHELIYAN TAK AAPAS ME SHABD AAYAT NIRYAT KARTEE RAHTEE HAIN.

    MAIN PRASANSNIY SAMEEKSCHA KAROONGA AAPKE LEKHAN KI KEE USME BADE SARE MARATHEE SHABD SAHAJATA SE AATE RAHTE HAIN AUR AAPKE ' VISHUDDH ' HINDEE PATHAK USKA ARTH BHEE SAMAJH JATE HAIN (LAGTA HAI ) AUR USKA AANAND BHEE UTHATE HAIN .

    AUR YE RACHNA TO AAPKE VARGIKARAN KE HISAB SE BHEE ' HINDUSTANEE ' HEE NAZAR AANEE CHAHIYE .

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  8. Raj Saheb
    Aap se milna aur ab aap ki rachna padhna ek aesa sukhad anubhav raha hai jise lafzon men bayan karna mere bas ki baat ki baat nahin.Aap seedhe saral lafzon men dil ki baat bahut safaii se keh dete hain jo apne aapmen ek aesa hunar hai jise aasani se nahin paya ja sakta.
    Aap jaise sarv gun vyakti ki jitni prashansha ki jaaye kam hai.
    Neeraj

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  9. neeraj bhayee ,

    aap apnee rachnayen padhen , meree prashansa bhool jayenge . fir bhee jarranawazee ka shukriya.

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  10. अत्यंत रोचक गंभीर भावो को वहन करती सुन्दर शब्द रचना ... वाह वाह यह ग़ज़ल यदि संगीत बद्ध हो तो सोने पर सुहागा मैंने तो इसको गाकर ही पढा

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  11. वो भुलना चाहे भुल जाएँ गम नहीं....
    उनकी चाहत थी खुद को मिटाते रहे....
    regards

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  12. वाह वाह क्या बात है! बहुत ही उन्दा लिखा है आपने !

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  13. टिप्‍पणी करने के पहले ही क्षमाप्रार्थना कर लूँ तो अच्‍छा रहेगा। मैं स्‍वयं ग़ज़ल के मामले में निपट अज्ञानी हूँ फिर भी जो कुछ ग़ज़लगोई के बारे में जाना, समझा है उसको ध्‍यान में रखते हुए
    मैं इस ग़ज़ल में कहन तलाशने में विफल रहा हूँ । मेरी नीयत हतोत्‍साहित करने की नहीं है लेकिन ऐसी स्थिति में प्रशंसा करना घातक लग रहा है । ग़ज़ल सिर्फ रदीफ और काफिया ही नहीं है । ग़ज़ल के अशआर परस्‍पर संबंध भले ही न रखें लेकिन हर शेर अपने आप में स्‍पष्‍ट रूप से पूरी बात कहे यह ग़ज़ल की महत्‍वपूर्ण आवश्‍यकता है।
    वह बात अलग है कि आप जो कहना चाह रहें वहॉं मेरी ही अज्ञानता मुझे पहुँचने नहीं दे रही, इसी स्थिति को ध्‍यान में रखते हुए क्षमायाचना प्रारंभ में ही कर ली है।

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  14. तिलक राज जी ,
    आपसे पूर्णतः सहमत हूँ .मैं कोई गज़लकार नहीं हूँ . सच कहूं तो मैं खुद भी ग़ज़ल गीत या किसी छंद विधा या उसके व्याकरण से ही परिचित नहीं हूँ .रदीफ़ काफिये की बात करें तो मुझे उसके भी मतलब पता नहीं.परिभाषा तो दूर की बात है.मन में जो अनुभूति होती है ,ह्रदय को मजबूर करे तो कभी कभार अभिव्यक्ति में बदल जाती है.सब कुछ तात्कालिक ही होता है.कभी लगता है की कुछ आयं बांय बके जा रहा हूँ.कभी किसी को अच्छा लग जाये तो किस्मत मान लेता हूँ. जिस हुनर को ग़ालिब मीर ने पाया उसकी तो छुवन भी नहीं है मुझमे. आप जैसे कद्रदान कभी कुछ अच्छी असलाहियत दे देते हैं तो आगे सुधारने का जज्बा बन जाता है बस. शायद किसी दिन कोई ग़ज़ल लिख भी दूं.फ़िलहाल तो 'खुद अपनी कह लेता हूँ ,खुद अपनी सुन लेता हूँ.
    फिर भी आपका बहुत शुक्रिया की कुछ क्या तमाम गलतियों को इतनी शालीनता और सद्भाव से बता दिया .आगे भी मार्गदर्शन मिलता रहेगा यही उम्मीद है.

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